
हिमाचल प्रदेश,
कुल्लू,
रात का वक्त,
दिवाली के ठिक बाद की सर्दियो का मौसम कुछ अलग ही होता है। आज भी कड़के की ठंड थी। सभी लोग ठंड से बचने के लिए अपने अपने घर में जल्दी सो गये थे।
लेकिन कोई था जो जाग रहा था। इस ठंड में अपने दिल में लगी आग को बुजाने की कोशिश कर रहा था।
राणा हवेली चांद की रोशनी में जगमगा रहा थी। जगमगाती भी क्यों ना!,आज राणा परीवार में उनकी बहु जो आई थी।
वो बहु जो, खुन जमा देने वाली ठंड में बाल्कनी में खडी होकर चांद को देख रही थी। वहीं चांद जो आज बादलो के साथ आंख मिचोंली खेल रहा था।
वो लडकी थी इश्क सिंघानिया। दुल्हन के लाल जोडा में वो खुबसूरत लग रही थी। खुले बाल, मांग में सिदुंर, और मांगटिका, हल्का मैकअप, नका में नथ,होठ पर लाईट पिंक लिपस्टिक, गले में मंगलसूत्र और सोने के गहने, हाथों में हिरों से जडाऊ भारी कंगन और कांच की चूडिय़ां।
उपर से चांद की चांदनी में चमकता उसका चेहरा और दामन उसकी खुबसूरती को बढा रहे थे।
लेकिन इन सबके बावजूद भी वो कहीं खोई हुई थी। उसकी आंखो में नमी के साथ गुस्सा और नफरत भी दिख रही थी।
" तुम ये शादी करोगी और इस शाद को निभाना होगा। तुम्हारी शादी राणा परीवार के चारो बेटो से होगी और उन चारो को तुम्हें अपनाना होगा। तुम वहां गुंगी बनकर रहोगी। अगर तुमने अपना मुंह खोला या तुम्हारे मुंह से एक सिसकी भी राणा परीवार ने सुनली तो हम उसी पल तुम्हारी इस गुडिया को मार डालेंगे। "
उसके कान में यही शब्द गुंज रहे थे।
" आपको इसकी सजा मिलेगी चाचा जी और ऐसी सजा की आपने सोची नहीं होगी। " वो गुस्से में दांत पिस कर बोली और कमरे में जाकर अपना फोन उठा किसी को काॅल किया।
" उसके पुरे परीवार को उठवा लो। और खुशी को लेकर मुंबई चले जाओ। " इतना कह वापस फोन को स्वीच ओफ कर दिया।
स्टडी रुम ,
यहां का माहौल कुछ अजीब हो रखा था। मिस्टर एंड मिसेज राणा सोफे पर बैठे थे। वही उनके सामने स्टडी टेबल पर उनका बडा बेटा रुद्रांश बैठा पेपरवेट को घुमा रहा था।
उनका दुसरा बेटा रुद्राक्ष बुक शेल्फ से टिका काॅफी पी रहा था।मिसेज राणा ने देखा की उनका तीसरा बेटा गर्वीत, जो सोफे पर बैठा है, वो सिगरेट के कश भर रहा है। और चौथा बेटा अभिमान अपना सिर पकड कर बैठा है।
" हम यहां मातम नहीं मना रहा है जो तुम ऐसे बैठे हो। " मिस्टर राणा ने अभिमान को देखते हुए कहा।
" ऐसे नही तो और कैसे बैठूं? अच्छा ठिक है ये लिजिए " बोल वो आलती पालती मार सोफे पर बैठ गया। " अब ठिक है? "
इस पर मिसेज राणा ने अपना सिर ना में हिला लिया।
गर्वीत के होठों के कोने मुड गये।😏 उसके सामने एक कार्टून जैसा भाई जो बैठा था।
जिसे देख अभिमान frustrated हो गया। वो अपनी जगह से उठते हुए बोला " मैं कल सुबह चार बजे निकल जाऊंगा। मुझसे ज्यादा कुछ उम्मीद मत रखना इस शादी से लेकर। मैं ना तो इस शादी को मानता हूं ना उस लडकी को अपनी बिवी। और मैं अभी सिर्फ 23 साल का हूं। मुझे अभी से आप लोग इन सब जिम्मेदारियों में कैसे बांध सकते है। अगर मेरे काॅलेज में पता चला की मैंने शादी कर ली है तो पता है कितनी बदनामी होगी?? "
" वैसे भी काॅलेज में तु पेहले ही बदनाम है। पुरा काॅलेज तेरे गुस्से से डरता है इसलिए तेरे पास कोई नहीं आता। आपक पता है पापा इसने प्रिंसीपल के ओफिस में जाकर उसे मारा था। " रुद्राक्ष ने काॅफी का कप टेबल पर रखते हुए कहा।
" आप ऐसा बोल भी कैसे सकते है? आप जानते है वो प्रिंसीपल कैसा था? पैसे खाता था और काम एक भी नहीं करता था। पुरा दिन समोसा ठुसता रहता। एक बात और.. आप ना जलते हो मुझसे। आप को जलन होती है मेरी पॉप्युलारीटी देख कर! "
तभी गर्वीत के हंसने की आवाज आई।
" अबे साले...तु सिर्फ तेरी काॅलेज का क्रश है। और रुद्राक्ष भाई पुरी युनिवर्सिटी के। काॅलेज और युनिवर्सिटी में फर्क होता है भोदु। " गर्वीत मजाक उडाते हुए बोला।
अभिमान ने दांत पिसकर रुद्राक्ष को देखता है। जो हंसते हुए उसे ही देख रहा था फिर वो गर्वीत को देखता है।
" डैड,मैं जा रहा हूं। और मुझसे कोई उम्मीद मत रखना इस वाहियात शादी के लिए। मेरी तरफ से उस लडकी को मैं शादी के तोहफे में तलाक हीं दुंगा। मैं एक लडकी के लिए अपनी जिंदगी खराब नहीं कर सकता। मेरे holidays परसो खत्म हो रहे है। तो मैं चला। " अभिमान ने मिस्टर एंड मिसेज राणा को गले लगाया और वहां से चला गया।
" मैं भी चलता हूं। मेरे स्टुडेंट्स का फ्यूचर मैं एक लडकी की वजह से खराब नहीं कर सकता। " इतना कह कर बिना किसी की सुने रुद्राक्ष भी वहां से चला गया।
" तुम दोनो भी अब रुम में जाओ। " मिसेज राणा ने कहा।
मिस्टर राणा उन्हें रोकते हुए " नहीं रुको! एक जरुरी बात करनी है। "
" क्या हुआ डैड? " रुद्रांश ने भारी आवाज में पुछा।
" वो बात ये है की दुल्हन बदल गई है। " मिसेज राणा ने थोडा हिचकिचाते हुए कहा।
" मतलब? " रुद्रांश ने ना समझी से उन दोनो को देखा।
" वो तुम सबकी जिसके साथ शादी होने वाली थी उसकी जगह किसी और लडकी से शादी हो गई है। और वो बोल नहीं सकती। " मिस्टर राणा ने बात को आगे बढाया।
गर्वीत हैरान रह गया " गूंगी लडकी से शादी करा दी? "
रुद्रांश ने शांत आवाज में पुछा " पढी लिखी है या प्योर गांव की गवार लडकी ढूंढी है? "
मिसेज राणा ने कहा" देखो! ये बोल पाना , ना बोल पाना ये सब भगवान की देन है। पर वो लडकी खुबसूरत है और सातवीं तक पढी है। तुम्हारी बाते समझ सकती है। बस बोल नहीं सकती। "
" हूंहूहह! आपसे और उम्मीद भी क्या ही कर सकते है। " रुद्रांश ने तंज कसा।
" ऐसा मत बोलो बेटा। " एक मायूस सी आवाज आई।
" खुबसूरती सिर्फ जिस्म की नुमाईश में काम आती है और हम इतने गिरे हुए नहीं है जो किसी की खुबसूरती से, उसके जिस्मसे प्यार कर बैठे। आप जानती है हमारी जिंदगी में प्यार जैसी कोई चिज नहीं है। रुद्रांश भाई को अपने बिजनेस से मतलब है। रुद्राक्ष भाई को अपने स्टुडेंट्स के फ्यूचर से , अभिमान को इंजीनियरिंग करनी है तो वो कर रहा है और मैं!...मेरा भी अच्छा खासा नाम है। "
" तुम तो कुछ बोलो ही मत! तुमने तो खानदान में नाक कटवा कर रख दी है हमारी। राणा परीवार में से किसी ने आज तक ये शराब और सिगरेट को हाथ नहीं लगाया था और तुम.. अपने बाप के सामने बैठ कर ये सब कर रहे हो। एक नंबर के गुंडे बन चुके हो। ये हाथ में इतने टैटू करवा रखे है की पता ही नहीं चलता की चमड़ी के उपर चित्रकारी की है या चमड़ी के नीचे खुन में। " मिस्टर राणा गुस्से में बोले।
" मुझे तो समझ नहीं आता की आप लोगो ने हमारे लिए लडकी ढूंढी भी तो गांव की गवार ही? " रुद्रांश अपनी जगह से खडा हो गया ।
मिसेज राणा थोडा गुस्से में " ये क्या बार बार गांव की गवार..गांव की गवार लगा रखा है? सातवीं तक पढी है। घर के काम काज आते है उसे। अच्छा खाना बनाना भी आता होगा। "
" और ये मत भुलो की ये हमारे गांव की परंपरा है। " मिस्टर राणा सख्ती से बोले।
उन्होंने मिसेज राणा का हाथ पकड बाहर जाते हुए कहा " तुम दोनो का जब तक जी चाहे तब तक यहां रह सकते हो। फिर अपनी बिवी को लेकर अपने घर चले जाना।"
" आप ऐसा कैस कह सकते है। ये घर हमारे बच्चों का भी है। " वो उन्हे समझाते हुए बोली।
" मैं हमारे बच्चो के लिए, तुम्हारी आंखों में निराशा नहीं देखना चाहता। और एक बात, जहां पति रहता है वहीं उसकी पत्नी रहती है। और ये चारो एक महिना भी यहां रहले तो मैं इनकी जी हुजूरी करने को तैयार हूं। " उन्होंने अपनी बात रखी और तुरंत वहां से चले गये।
" लेकिन... " मिसेज राणा भी उनके पिछे जाने लगी की रुद्रांश की आवाज सुन वो उसे देखने लगी।
" ठिक है तो हम ही परसो निकल जाऐंगे। " इतना कह कर वो भी वहां से निकल गया।
अब सिर्फ वहां गर्वीत और मिसेज राणा ही बचे थे।
" तुम भी चले जाओ अपने भाईयों की तरह। तुम क्यों यहा खडे हो। जाओ यहां से। " वो सिसक सिसक कर रोने लगी।
गर्वीत ने उनका हाथ पकड नर्म आवाज में कहा " मैं आपको छोडकर कैसे जा सकता हूं? आप भी चलो ना हमारे साथ। मुझे आपकी बहुत याद आती है। आपके हाथ के खाने का स्वाद कोई नहीं ला पाता। कभी कभी तो बिना खाए सोना पडता है। "
" मेरा गुरु! मुझे भी तुम सबकी याद आती है। तुम तो जानते ही हो की तुम्हारे पापा सरपंच है तो कितना काम रहता है उन्हें। लेकिन हम कोशिश करेंगे की तुम्हारे पास आ सके। "
गर्वीत मुस्कुराकर उन्हें देखने लगा।
" सुनो! तुम जाओ तो बहु को भी ले जाना शहर। वो भी घुम लेगी, बिचारी ने कभी शहर देखा नहीं है तो! और उसे ज्यादा डांटना मत। तुम सबके साथ घुलने मिलने में उसे थोडा वक्त लगेगा ठिक है? अब तुम आराम करो। " फिर मिसेज राणा वहां से चली गई।
गर्वीत जो अभी तक अपनी मां से मुस्कुराकर बात कर रहा था उसकी मुस्कान गायब हो गई। वो रुम से निकला और सीधे अपने रुम में चला गया।
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