
अगली सुबह,
5 बजे ,
इश्क बाल्कनी में खडी थी। उसके बालो से पानी टपक रहा था और उसने पिंक कलर का फुल स्लीव वाला अनारकली सुट पहना था। चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था। गले में सिर्फ मंगलसूत्र था।
उसने सिंदूर नहीं लगाया था। ना ही कोई शाॅल और स्वेटर पहन रखा था। कंपकंपती ठंड में वो ऐसे ही खडी थी।
" काश आप उस वक्त मुझे अपने साथ ले गये होते तो आज मैं यहां ना होती। आपकी बहोत याद आती है। " इश्क ने नम आवाज में चांद को देखते हुए कहा।
" मैं इस शादी को कभी नहीं निभाउंगी दुर्गा मैया! कभी नहीं...ये शादी सिर्फ एक मजबूरी थी!, है! और हंमेशा रहेगी! मैं उन चारो को कभी अपना पति नहीं मानूंगी। एक लडकी की शादी कभी चार लडको से नहीं हो सकती और इस बंधन को भी टुटना होगा। फिर चाहे मुझे मरना ही क्यों ना पडे। " उसकी आंख से आंसू बह गये।
" दुर्गा मैया, आप देख रहे है ना? मुझे यहा गूंगी बनकर रहने को कहा गया है। मैं सिर्फ सातवीं तक पढी हूं ये बताया गया है इन लोगो को। लेकिन महादेव आप जानते हो ना मैं बोल सकती हूं..." वो आगे कुछ कह पाती उससे पहले ही दरवाजा खटखटाने की आवाज आई।
इश्क ने आंसू पोंछे और अंदर आकर दरवाजा खोला।
सामने मिसेज राणा अपने हाथ में कपडें और गहनो का थाल लेकर खडी थी।
उन्हों ने जब इश्क को गिले बालो में देखा तो वो जल्दी से अंदर आ गई और उसे डांटने हुए " बहु ठंड में बाल क्यों धोए..और इन्हे ऐसे ही खुला रख दिया। जल्दी से इन बालो को सुखाओ। " उन्होने अपने हाथ में पकडे थाल को बेड पर रखा।
तभी एक ठंडी हवा का जोंका अंदर आया और मिसेज राणा का बदन सिहर उठा।
" तुमने बाल्कनी का दरवाजा खुला क्यों छोडा? पागल लडकी ठंड से जम जाओगी। और ये क्या? अपने शरीर को गर्म रखने के लिए कुछ पहना भी नहीं है। " मिसेज राणा ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और जल्दी से थाल में रखी शाॅल को इश्क को ओढा दिया। फिर हैर ड्रायर से इश्क के बाल सुखाने लगी।
इश्क बस चुपचाप देखती रही।
मिसेज राणा आयने मे इश्क को देख रही थी जिसका चेहरा हल्का जुका हुआ था। मासूम चेहरा, काली आंखे , घनी पलके, बिना किसी मेकअप के वो बहुत सुंदर लग रही थी। उपर से उस पर गुलाबी रंग काफि खिल रहा था।
" बेटा! ऐसे ठंड के मौसम में दरवाजे खिडकी खुले रहोगी तो तुम्हे सर्दी लग जाएगी। "
" बेटा कल रात तो मैं तुमसे नहीं मिल पाई थी। पर कोई बात नहीं,अभी बता देती हूं! मैं जानती हूं की तुम ज्यादा पढी लिखी नहीं हो और गांव की रहने वाली आम लडकी हो। "
" मुंबई की रहने वाली हूं मैं आंटी जी। और मैं इंजिनियरिंग कर रही हूं। अपनी यूनिवर्सिटी की टॉपर हूं। " इश्क मन ही मन बोली।
" तुम्हारी शादी जिन हालात मैं हुई मैं समज सकती हूं।"
" शादी मायू फुट.. आप नहीं समझ सकती की किस मुसीबत में फंस गई हूं। " उसने अपनी मुठ्ठी कस ली ।
" तुम्हे मेरे बेटों के बारे में कुछ नहीं पता है। वो क्या करते है? कहां रहते है? उनकी उम्र क्या है?..ये सब जानने के लिए तुम उत्साहित होगी ना?
इश्क ने सिर हिलाया " जानना भी नहीं चाहती मैं आपके उन निकम्मे बेटो के बारे में। भाड में जाए सारे के सारे। "
" चलो मैं बता देती हूं। मेरे पहले बेटा का नाम है रुद्रांश ,दुसरे का नाम है रुद्राक्ष...ये दोनो जुड़ा है.. दोनो की उम्र 32 साल है। रुद्राक्ष काॅलेज में बच्चों को पढाता है और रुद्रांश हमारी कंपनी संभालता है। "
इश्क ने अपनी आंखे राॅल की। उसे इनसे कुछ मतलब नहीं था। अगर किसी चिज से मतलब था तो सिर्फ कुल्लू से बाहर निकलना।
" मेरे तीसरे बेटे का नाम है गर्वीत..पर हम सब उसे गुरु बुलाते है। गुरु रुद्रांश से चार साल छोटा है। गुरु से चार साल छोटा मेरा चौथा बेटा अभिमान! जो इंजिनियरिंग कर रहा है मुंबई में। ये चारो साथ ही रहते है। " मिसेज राणा इश्क से प्यार से बात कर रही थी। वो धीरे धीरे उसके बाल सुखा रही थी।
इश्क चुपचाप उन्हे देख रही थी। वो उन्हें बहोत कुछ कहना चाहती थी। पर उनके कोमल स्वभाव को देख वो चुप रही।
" हम सब अभी मंदिर जाऐंगे..मैंने तुम्हारे बाल सुखा दिये है..मैं जानती हूं तुम्हे ये मशीन वगैरा चलाना नहीं आता होगा। इसलिए मैंने तुम्हारे बाल सुखा दिये। अब तुम ये कंगन और पायल पहन कर जल्दी से निचे आ जाओ..और हां सिंदूर मंदिर में रुद्रांश और गुरु लगा देंगे तुम्हे..तो यहां पर थोडा सा लगा लेना। "
वो वहां से चली गई। इश्क ने घडी की तरफ देखा तो 5:45 बज रहे थे। उसने उबासी ली । " यहां से जल्द से जल्द निकलना पडेगा। " बोलकर उसने तकिये के निचे से अपना फोन निकाला और ओन कर किसी को मैसेज भेजने लगी।
थोडी देर बाद,
हाॅल में,
मिसेज राणा इश्क को लेकर निचे उतरी। इश्क के सिर पर घूंघट था।
इश्क ने अपने कपडे चेंज कर लिये थे। उसने गुलाबी कलर की साडी पहनी थी। जो मिसेज राणा ने उसे दी थी। सुर्ख मरहुन शाॅल ओढ रखा था। कलाई में शादी का चुडा और सोने के कंगन, गले में गोल्ड नेकलेस और मंगलसूत्र पहन रखा था। खनकती पायल की आवाज ने रुद्रांश और गुरु को उसकी तरफ देखने पर मजबूर कर दिया था।
मिसेज राणा और इश्क निचे आए।
" नंदनी! नए नवले पतियों को उनकी पत्नी का चेहरा तो दिखाओ। या फिर बहु इतनी सुंदर है की पर्दे में ही रखना चाहती हो। " अमर जी [मिस्टर राणा] ने कहा।
" सुंदर तो बहोत है! " बोल उन्होंने इश्क का घूंघट उठा दिया।
इश्क की खुबसूरती देख रुद्रांश और गुरु कुछ सेंकेंड के लिए उसे देखते ही रहे..फिर उन दोनो ने अपनी नजरे फेर ली। वहीं इश्क अपने सुशील शर्मीले होने के नाटक में थी। जैसा उसे कहा गया था। उसने एक नजर भी उन दोनो को नहीं देखा।
अमर जी ने नौकर से नोटो की गड्डी मंगवाई और इश्क के सिर पर फेरते हुए " नजर ना लगे हमारी बेटी को.."
" कमसकम उसे बेटी तो ना कहे डैड..वो हमारी बहन नहीं ,बिवी है.. तो उसे बिवी ही रहने दे। और आप भी उसे बहु बनाकर ही रखे..बेटी ना बनाए। " यही वो पल था जब इश्क ने सिर उठाकर कर रुद्रांश को देखा था। दोनो की नजरे एक पल को टकराई।
नंदनी जी ने रुद्रांश के कान खिंचते हुए " वो हमारे लिए बेटी जैसी ही है।"
उनकी बात पर गुरु इश्क से बोला " एए... सुनो तुम..ये मंगलसूत्र,सिंदूर उतारो और हम दोनो भाईयों को राखी बांध दो... ये बीवी ,बहु बनना छोडो और बहन बन जाओ। रक्षाबंधन पर पैसे भी बहोत मिलेगे। और मां पापा को एक रेडिमेड बेटी मिल जाएगी..इस उम्र में उनको इतनी मेहनत करवाना सही नहीं रहेगा। "
इतना कहने भर की देर थी एक थप्पड उसके मुंह पर लगा। नंदनी जी के गाल शर्म से लाल हो गये थे। अमर जी के कान भी लाल थे..अब यो शर्म से लाल थे या गुस्से ..ये तो वही जाने।
" जब भी मुंह खुलता है गोबर ही निकलता है...चलो चुपचाप मंदीर..और खबरदार जो एक लफ्ज भी बोला है रास्ते में। " वो गुस्से से बाहर चले गये।
" बहु तुम भी चलो..इनकी बकवास सुनने की जरुरत नहीं है। " नंदनी जी इश्क को अपने साथ ले गई। वो भी हल्का मुस्कुराते हुए चली गई।
गुरु मुंह बनाकर " मुझे क्युं मारा? कुछ गलत बोला क्या? "
रुद्रांश " हम कुछ भी अच्छा करले इनको बुरा ही लगेगा। "
कुछ समय बाद,
इश्क , गुरु और रुद्रांश के साथ मंदिर के सामने खडी थी। उनके साथ ही मिस्टर एंड मिसेज राणा भी थे।
नंदनी जी " रुद्रांश बहु को गोद में उठा कर मंदिर की सीढिया चढना शुरु करो। "
तभी गुरु ने बिच में कहा " मां ये लडकी हम दोनो की बिवी है तो हम दोनो भाई इसे एक साथ गोद में उठाएंगे। " उसका इशारा समज रुद्रांश के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई।
रुद्रांश भी उसका साथ देते हुए बोला " हां मां!, गुरु सही कह रहा है। सिर्फ 25 सीढिया ही तो है। "
इश्क आंखे बडी कर उसे देखने लगी। क्या मतलब ये दोनो उसे गोद में उठाऐंगे वो भी एक साथ। पर कैसे?
" इन दोनो ने सुबह सुबह दारु चढा रखी है क्या? " गुरु की तरफ देख " ये बेवडा आखिर कहना क्या चाहता है? जो ऐसी बाते कर रहा है? और इसने किस बुनियाद पर ये कहा की ये दोनो भाई! जो दिखने में ही एक नंबर के बेवकूफ, बेशर्म , मुंहफट और बुझदिल लगते है। ये..ये मुझे गोद में उठाएंगे? मुझे? इश्क सिंघानिया को?..इनकी औकात ही क्या है मेरे आगे...." वो मन ही मन गुरु पर गुस्सा हो बोली
अमर जी " मैंने मना किया था ना, अपना गटर जैसा मुंह बंध रखना। और तुम दोनो इसे एक साथ कैसे उठा सकते हो? "
" ऐसे..." बोलकर रुद्रांश ने इश्क के दोनो हाथ पकडे और उपर की तरफ कर दिये। गुरु ने जल्दी से दोनो पैर पकड लिए।
रुद्रांश ने इश्क के दोनो हाथों की कलाई पकडी और गुरु ने पैर। इश्क का चेहरा आसमान की ओर था और पिठ जमीन की ओर, और शाॅल निचे गिर गई थी।
इश्क सदमें में चली गई थी। वो कुछ कर पाती उससे पहले ही दोनो भाईयों ने एक दुसरे को इशारा किया और फिर तेजी से सिढीया चढने लगे।
वहीं अमर जी एंड नंदनी जी आंख फाड़े , मुंह खोले उन दोनो को देखते ही रहे। वो दोंनो स्तब्ध हो गये थी।
" रोकिए इन दोनो को। " नंदनी जी भी जल्दी से सीढिया चढने लगी। अमर जी हडबडाते हुए होश में आये और उनके पिछे गये।
वहीं इश्क को तो सदमा लगा था और गुस्सा भी आ रही था। मतलब दो लोगो ने, जो उसके पति थे। इश्क को उसके हाथ और पैर से उठा रखा था और वो जुलते हुए उपर मंदिर तक पहोंची थी। उपर पहुंचते पहुंचते दोनो भाईयों ने बिच बिच में उसकी पिठ को सीढियों से जानबूझकर टकराया था।
" भाई इसको खाई से फंक दे?" गुरे ने ठंडी आवाज में पुछा तो इश्क को तेज गुस्सा आया। वो मजबूर थी इसलिए कुछ बोली नहीं।
" नहीं! हम इसे खाई में नहीं फेंक सकते लेकिन जमीन पर तो....." उसने बात अधुरी छोड दी।रुद्रांश की बात का मतलब समझ गुरु के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उन दोनो की बात सुन इश्क जोरे ना में अपना सिर हिलाने लगी।
दोनो ने इश्क को देखा। जो अपना चेहरा ना में हिला रही थी। पर उन दोनो को कहां फर्क पडने वाला था।
रुद्रांश और गुरु, इश्क को जुला जुलाते हुए
गुरु " एक "
रुद्रांश " दो "
गुरु " तीन "
रुद्रांश "चार"
गुरु " पांच...और ये गई... "
दोनो ने एक साथ इश्क के हाथ पैर छोड दिये ।
गुरु अपने हाथ झाडते हुए " मजा आ गया।"
इश्क जोर से पिलर से जा टकराई।
" आहह हरामजादो! " इश्क की चिख मंदीर के सन्नाटे को चिर गई। उसे दर्द भी हो रहा था लेकिन दर्द से ज्यादा गुस्सा आ रहा था।
जब गुरु और रुद्रांश ने उसके मुंह से आवाज सुनी तो दोनो उसकी तरफ देखने लगे। गुरु ने जब आसपास देखते हुए " भाई ये गाली कौन बोला? " पर मंदिर पुरा खाली था।
" इसी गूंगी ने दी है! " रुद्रांश शक भरी नजरों से इश्क को देखने लगा
" ये गूंगी बोलती भी है? मतलब साली अब तक जुठ बोल रही थी...." गुरु रुद्रांश की तरफ देख बात कर रहा था
इश्क का सब्र अब जवाब दे गया था। उसे बेहद गुस्सा आ रहा था। वो अब चुप नहीं रह सकती थी।
इश्क गुस्से में खडी हुई और तेजी से गुरु के पास पहोंची और उसका कोलर पकड अपनी तरफ घुमाया और एक तमाचा उसके गाल पर जड दिया। क्योंकी गुरु ने ही कहा था की दोनो भाई इश्क को एक साथ उठायेंगे। तो थप्पड भी उसे ही पडना था।
" अबे साले भड़#वे...एक नंबर के कमीने हरामजादे!.." इश्क आगे कुछ बोल पाती उससे पहले ही अमर जी और नंदनी जी वहां चिल्लाते हुए पहोंचे।
उनके चिल्लाने की आवाज सुन इश्क ने गुरु को जोर से धक्का दिया जिससे वो चार कदम पिछे हो गया।
इश्क ने तीखी और गुस्से भरी नजर से रुद्रांश को देखा। जो अविश्वास से उसे ही देख रहा था। वो उसे भी बहुत कुछ कहना चाहती थी पर नंदनी जी को देख फिर चुप हो गई ।
अब तक नंदनी जी इश्क के पास पहोंच गई थी। उन्होंने जल्दी से इश्क को शाॅल ओढाई और गले लगा लिया। जाहिर था अपने बेटों की करतुत दख उन्हे इश्क की फिक्र हो रही थी।
मिस्टर राणा पिछे से आये और रुद्रांश और गुरु दोने की पिठ पर एक एक मुक्का मारते हुए " तुम दोनो कब सुधरेगे? ये कोई तरीका है बहु के साथ पेश आने का? उसे चोट लग जाती तो? एक तो बिचारी बोल भी नहीं सकती! अपना दुख-दर्द कैसे बताएगी कभी सोचा है? और तुम दोनो जाहिल इंसान उस पर जुल्म कर रहे हो वो भी शादी के दुसरे दिन ही...शर्म नहीं आती? डुब मरो कहीं जाकर दोनो..."
" आप जिसे बिचारी कह रहे है ना वो कमीनी है। बोल सकती है। गूंगी नहीं है। और पापा एक दफा फिर सोच ले! अगर हम मर गये तो आपका ख्याल कोई नहीं रखेगा। आप अपने उन दोनो निकम्मों से तो उम्मीद ही मत रखना। और फिर संभालते रहना अपना बिजनेस। फिर करते रहना उनकी वाह-वाही " रुद्रांश ने कहा।
गुरु भी उसका साथ देते हुए " आप जिस बहु की इतनी तरफदारी कर रहे है ना वो गूंगी नहीं है...अभी हम दोनो को गालियाँ दे रही थी...हरामजादा बोला हमें। " उसने भोली शक्ल बना ली।
अमर जी " तुम दोनो जाहिलों से तो वो दोनो अच्छे ही है। ढंग का काम तो कर रहे है। तुम्हारी तरह आवारागर्दी तो नही कर रहे। "
" बस करो सब.....हम इस वक्त कुलदेवी के मंदिर में खडे है..कुछ शर्म लिहाज कर लो। अब कोई बहस नहीं होगी...पुजा खत्म होते ही तुम दोनो बहु को लेकर निकल जाना..यहां रहने की कोई जरुरत नहीं है। "
" लेकिन मां..."
" यही मेरा आखरी फैसला है। " नंदनी जी की सख्ती देख वो दोनो फिर चुप हो गये।
इश्क, रुद्रांश और गुरु तीनो ने एक दुसरे की तरफ देखा। फिर इश्क ने उन दोनो से मुंह फेर लिया।
" भाई हमें एटिट्यूड दिखा रही है। "
" इस बोलने वाली गुंगी को तो देख लेंगे.."
आधे घंटे बाद सभी महाकाली मां के सामने खडे थे।
इश्क का नाम, सफेद और गोल्डन बार्डर वाले कपडे पर कुमकुम से कुछ इस तरह लिखा था।
इश्क रुद्रांश रुद्राक्ष गर्वीत अभिमान राणा
पंडित जी ने नाम दोहराए " इश्क रुद्रांश राणा , इश्क रुद्राक्ष राणा , इश्क गर्वीत राणा , इश्क अभिमान राणा। "
फिर पंडित जी के कहने पर रुद्रांश और गुरु ने इश्क की मांग भरी। उस समय इश्क ने अपनी आंखे बंद करली
" क्या आपको ये निकाह कुबूल है? कुबूल है.. " इश्क के कानो मे ये शब्द गुंज पडे..उसके रोंगटे खडे हो गये।
इश्क की आंखे झटके से खुल गई। उसकी आंखे सीधी महाकाली मां की मुर्ति से टकराई।
उसके पुरे शरीर मे झनझनाहट सी फैल गई।
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All subsequent chapters will be released on Monday, Wednesday and Friday.
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