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Chapter 3 [ इश्क ने की रुद्रांश की बेईज्जती ]

राणा हवेली,

सभी घर वापस लौट चुके थे। मंदिर से आने के बाद ही इश्क थोडी गुमसुम सी हो गई थी।

नंदनी जी जो इश्क के साथ किचन में बाते करते हुए नाश्ता बना रही थी।

" देखो इश्क मुझे माफ कर देना आज मंदिरमें मेरे बेटों ने तुम्हारे साथ जो हरकत की उसके लिए। कहने को तो रुद्रांश और रुद्राक्ष जुड़वा है पर दोनो की हरकते एक दम अलग है। रुद्र अपने चाचा पर गया है और रुद्राक्ष अपने बाप पर। "

" चाचा? जहां तक खुशी ने मुझे बताया था वहां तक, यहां पर घर के सारे भाईयों की शादी एक लडकी से होती है। तो इनके चाचा कहां से पैदा हो गए? " फिर ज्यादा ना सोच नंदनी जी की बात पर इश्क ने हल्की मुस्कान पास की।

नंदनी जी ने बोलना जारी रखा " इन दोनो की हरकते बिल्कुल अलग है... लेकिन रुद्र बुरा नहीं है..दिल का साफ है। रुद्राक्ष थोडा सख्त मिजाज का है। गुरु की कुछ बाते तुम नजरअंदाज करना, तभी तुम उसके साथ रह पाओगी। और अभिमान, वो तो मेरा सबसे लाडला और अच्छा बेटा है। बस थोडा जिद्दी है। "

नंदनी जी इशक के गाल पर हाथ रख " बहु तुम आज ही मुंबई जा रही हो तो अपना और अपने सारे पति का ख्याल रखना। अच्छा अब तुम जाकर सामन पैक कर लो। मैं टेबल पर नाश्ता लगा लुंगी। " इश्क किचन से निकल अपने कमरे में आई की उसकी नजर सामने बेड पर गई।

" तुम दोनो यहां क्या कर रहे हो? " सामने रुद्रांश और गुरु बेड पर बैठे थे।

इश्क की बात गुरु बेड से उठकर उसके नजदीक गया। इश्क अपनी जगह से बिल्कुल नहीं हिली।

" हम तो बस देखने आए थे की एक गुंगी लडकी जुबान कितनी लंबी होती है। " गुरु ने इश्क को देखते हुए कहा और फिर रुद्रांश की तरफ देखा।

इश्क ने आंखे छोटी कर उसे घुरते हुए कहा " मेरी जुबान तुम्हारी जुबान से तो लंबी ही है। अभी के अभी मेरे कमरे से निकलो। "

" ये घर हमारा है। " पिछे से रुद्रांश की हक जताती आवाज आई।

" तो इसे apni g#anɗ में घुसकर फिरो। " इश्क के इतना कहते ही गुरु ने गुस्से में इश्क के बालों को अपनी मुट् प में जकड लिया। गुस्से में रुद्रांश का जबडा भींच गया। उन दोनो को इश्क की ये बदतमीजी जरा भी पसंद नहीं आई थी।

गुरु दांत पीस बोला " इस लहजे में तो आज तक मैने भी भाई से बात नहीं की और तुम कल की आई...."

इश्क भी गुस्से में बोली " तो अपने इस भाई से कह दो की आदत डाल ले मेरे इस लहजे की, जब तक हमारा तलाक नहीं हो जाता। "

रुद्रांश उन दोनो के पास आया और गुरु के हाथ से इश्क के बाल छुडाते हुए " गुरु उसके बाल छोडो। उसके इतने अच्छे बाल खराब हो जाएगें। वैसे भी इसकी खुबसूरती इसके बालों से ही है। वरना शक्ल तो जले पकोडे जैसी है। "

" तुम्हारी शक्ल भी कुछ खास अच्छी नहीं है। अंडे जैसी शक्ल पर इतना इतराते नहीं। " इश्क ने रुद्रांश के सीने पर हाथ रख उसे हल्का धक्का दिया।

इश्क ने बेड की तरफ मुडी ही थी की गुरु ने उसकी साडी का पल्लु पकड रोक दिया " और इसी अंडे जैसी शक्ल को देख लडकीयां मरती है। "

" बेशक! बेशक से वो सारी मर ही जाती होगी जो तुम्हारे इस नौसिखिए भाई की चमार जैसी शक्ल को देख लेगी, वो भी सुबह सुबह। " इश्क ने अपना पल्ला छुडाया।

" अब निकलो यहां से। मुझे दिल्ली वापस जाना है। मेरे काॅलेज शुरु होने वाले है। तुम दोनो की तरह गुंडागर्दी नहीं करती मैं। "

" हम भी कोई गुंडे नहीं है। रुद्रांश भाई कंपनी के CEO है। और मैं.." उसकी बात बिच में काटते हुए इश्क ने कहा " तुम! तुम्हारे भाई के इशारो पर नाचने वाले कुत्ते हो। जो अपने इस खुदगर्ज भाई के लिए दुम हिलाते हुए आ जाता है। " अगले ही पल इश्क का गला रुद्रांश के हाथ में था।

रुद्रांश का दिमाग अब गुस्से में उबलने लगा था। वो एक एक लफ्ज दांत पीसते हुए बोला " हम इतनी देर से कुछ बोल नहीं रहे है इसका मतलब ये नहीं की तुम जो मर्जी आए वो बोलोगी। मैं अपने उपर लगा हर इल्ज़ाम बर्दाश्त कर सकता हूं पर कोई और...खासकर तुम्हारे जैसा आकर मेरे भाईयों के बारे में कुछ भी बोलेगा तो मैं बर्दाश्त नहीं करुंगा। " उसकी पकड इश्क के गले पर कसती जा रही थी।

इश्क ने रुद्रांश के सीने पर मुक्के मार उसे दुर करने की कोशिश की पर वो टस से मस नहीं हुआ। इश्क को सांस लेने में प्रोब्लेम होता देख रुद्रांश ने उसे छोड दिया और गुस्से में कमरे से निकल गया। इश्क दिवाल से लगी लंबी लंबी सांसे ले रही थी।

रुद्रांश के जाने के बाद गुरु ने पानी का जग टेबल पर से उठा ग्लासमें डालते हुए पुछा " वैसे तुम कितने साल की हो? "

" मेरी उम्र जान कर क्या sÈx करने का इरादा है? " वो अभी भी गहरी सांसे ले रही थी। लेकिन आवाज में एक चिढ़ थी।

गुरु ने उसकी तरफ पानी का ग्लास बढाया और ठंडी आवाज में बोला " तुम्हारी जुबान पर लगाम दो इश्क। आखरी दफा बोल रहा हूं। "

" मैं भी आखरी दफा बोल रही हूं मिस्टर गर्वीत राणा ,शराफत के साथ निकल जाओ इस कमरे से। "

" वो तो मैं जाउंगा ही लेकिन इस सुबूत के साथ। " गुरु ने अपना फोन दिखाते हुए कहा।

इश्क ने पानी पीते हुए पुछा " क्या सबूत है इसमे? "

"ये..." बोलकर उसने अपने फोन में अब तक की सारी बातों की recording इश्क को सुना दी।

जिसे सुन इश्क हंसने लगी। उसे यूं हंसता देख वो नासमझी में बोला " तुम्हे जरा भी डर नहीं है की अगर ये recording माॅम और डैड ने सुन ली तो क्या होगा? तुम्हें जरा भी अंदाजा है की तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा? "

" ठिक है तो सबसे पहले तुम ये recording जाकर सुना दो उन्हें। फिर देखो मैं क्या करती हूं....." इश्क ने killer expression से गुरु को देखा और फिर सीधा वाॅशरुम में चली गई।

गुरु ने एक नजर बंद दरवाजे को देखा और फिर दांत पीसते हुए कमरे से निकल गया " तुमने मेरी बेइज्जती की ना! तुम भी याद रखोगी की तुमने पंगा किससे लिया था। "

थोडी देर बाद,

सभी ने नाश्ता कर लिए था। अमर जी और नंदनी जी ने उसे पहली रसोई का नेग दिया था। जिसमें खानदानी कंगन और एक डायमंड ब्रेसलेट था।

" तुम दोनो कुछ नहीं लाए? " नंदनी जी ने गुरु और रुद्रांश के चिढ़ से भरे चहरे देख पुछा।

जिस पर रुद्रांश सपाट लहजे में इश्क को घुरते हुए " वो माॅम हमे अभी आपकी बहु पसंद नापसंद का कुछ पता नहीं है। इसलिए कुछ नहीं लिया। "

" तलाक दे दो..इसके इलावा तुम कुछ और दे सको उतनी औकात नहीं है तुम्हारी... " इश्क भी उसे उसी तरह घुरते हुए अपने मन में बोली। जिसे समज रुद्रांश के जबडे कस गये।

" हम रास्ते में इसे गिफ्ट दिलवा देंगे। आप परेशान ना हो। " गुरु अपनी जगह से उठते हुए बोला और बाहर चला गया।

" परेशानतो रहेंगे ही ना , तुम्हारी करतुते देख दिल के दोहरे पडने लगते है। " अमर जी ने ना में अपना सिर हिलाया। वो वहां से चले गये।

रुद्रांश अपना नाश्ता खत्मकर बोला " 10 मिनट के अंदर तुम मुझे बाहर चाहिए वरना यहीं छोडकर निकल जाउंगा। "

" इश्क मेरे साथ चलो। तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है। " नंदनी जी उसे अपने साथ ले गई।

After 15 minutes,

अमर जी बाहर गाडी के पास खडे दोनो को घुर रहे थे। उन्हें यकीन था की की अगर इन दोनो के उपर कोई निगरानी करने वाला ना हो तो अपने मन की करते है।

रुद्रांश ड्राइविंग सीट पर बैठा था, वहीं गुरु बोनट से टिककर खडा था। दोनो भाईयों के चेहरे पर sunglasses थे।

अमर जी " इन सर्दिय में तुम दोनो को कौनसा सुरज खाए जा रहा है जो ये अंधों की तरह चश्में पहन रखे है। winters में सुरज की धुप लेनी चाहिए ताकी शरीर..."

" कितना टोकते है आप मेरे बच्चो को। " पिछे से टोकती हुई नंदनी जी की आवाज आई।

गुरु smirk कर ," बापु..हमारी मां के सामने हमे टोक के दिखाओ..."

" अपनी बाप को सिखा रहा है..." अमर जी ने छोटी आंखे कर गुरु के कान खिंचे।

" आहहह मांआआ...आपके पति मुझ पर जुल्म कर रहे है। " अमर जी आंखे बडी कर उसकी नौंटकी देख रहे थे।

" कान छोडिए उसका..बडा हो गया है अब ये। " नंदनी जी ने कार का दरवाजा खोल इश्क को अंदर बिठाया।

" पर बडों की तरह दिमाग नहीं चलाता। " अमर जी ने कहा। फिर रुद्रांश की तरफ देख " ध्यान से जाना। अपना ख्याल रखना और देर रात तक ओफिस में मत बैठे रहना। ये याद रखना की अब तुम्हारी शादी हो गई है। उसकी जिम्मेदारी तुम चारो भाईयों को बराबर लेनी है। चारो मिलबाट कर रहना बहु के साथ! और खुश रहना और दुसरो को भी रखना " लास्ट लाईन उन्होंने गुरु को देख ही बोली थी। जो अपने फोन में कुछ scroll कर रहा था।

" डैड ये लडकी है, कोई मैग्गी नहीं की मिल बांटकर खा जाए... " गुरु ने एक नजर इश्क को देख कहा जो उसे ही घुर रही थी। रुद्रांश ने सिर्फ अपना सिर हां में हिलाया।

अमर जी ने खा जाने वाली नजरो से गुरु को देखा। " हीं हीं मजाक कर रहा था " फिर इश्क को देख प्यार से कहा " इश्क! बेटा तुम बोल नहीं सकती इसको अपनी कमजोरी मत समज ना..अगर ये सब ज्यादा परेशान करे तो हमें चिट्टी लिख देना। भवानी राणा इनकी खातिरदारी करने पहोंच जाएगी। " उनकी बात पर इश्क ने हां में सिर हिला दिया।

वहीं दोनो भाईयों की आंखे बडी हो गई। दोनो एक दुसरे को देखने लगे। हल्का डर उनकी आंख में उभर आया।

" DUDE गाडी भगा वरना भवानी के साथ भानु राणा भी यहीं आ जाएगा। " गुरु की बात पुरी होती उससे पहले ही रुद्रांश ने गाडी स्टार्ट की और मैन गेट को क्रोस कर दिया।

" जान बची आज तो.. ये डैड भी किसी और की धमकी नहीं दे सकते थे।" गुरु ने अपने सिने पर हाथ रख सांस छोडी।

" वैसे ये भवानी राणा कौन है? " इश्क ने curious होकर पुछा।

" हमारा दादी है। " रुद्रांश ने सख्त आवाज में कहा।

उसके जवाब पर इश्क का मुंह बन गया। " इतना भी कुछ तुमसे कह नहीं दिया था जो ये उबले हुए गोबर की शक्ल लेकर घुम रहे हो। " रुद्रांश बस गुस्से का घुंट पी गया।

" अच्छा सुनो! दिल्ली आ जाए तो मुझे उठा देना। वहां से मुझे मेरे दोस्त पिक कर लेंगे। अब मैं सोने जा रही हूं। good night." इश्क ने सिट पर सिर टिका कर अपनी आंख बंद करली।

" तुम्हारे बाप के नौकर नहीं है! " रुद्रांश ने गुस्से में कहा।

इस बारी इश्क ने सख्त आवाज में कहा " Shuuuhh..मैंने एक बारी कहा ना पति..की मैं सोने जा रही हूं। So Don't Disturb Me. "

गुरु ने रुद्रांश को देखा, जो अपना गुस्सा दबाने की कोशिश कर रहा था। पर माथे की नसे तनी हुई थी। बार बार इश्क के मुंह से अपनी बेइज्जती करवा कर वो अंदर ही अंदर जल भुन रहा था।

गुरु ने गर्दन घुमाकर पिछे आराम से सोई इश्क को देखा फिर रुद्रांश के कान में धीरे से कुछ कहा। जिसे सुन रुद्रांश के होंठो के कोने मुड गये।

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